बजरंग बाण
बजरंग बाण के पाठ करने मात्र से हर प्रकार का डर और संकट दूर हो जाते है , भगवान शिव के रुद्रावतार कहलाने वाले श्री हनुमान का बजरंग बाण बहुत ही फल कारक पाठ है ।
आइये इस पाठ के स्मरण मात्र से सभी समस्याओ का हल स्वयं बजरंगी करने आ जाते है , आइये हम सब मिल कर इसका पाठ करे ....
बजरंग बाण
।। दोहा ।।
निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करे सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करे हनुमान ।।
चौपाई ।
जय हनुमंत संत हितकारी ।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलम्भ न कीजै ।
आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कुदि सिन्धु वहि पारा ।
सुरका बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाए लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गयी सुर लोका ।।
जाए विभीषन को सुक दीन्हा ।
सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग उजार सिन्धु महुँ बोरा ।
अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेट लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर मे भई ।।
अब विलम्ब केंहि कारन स्वामी ।
कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।
जय जय लखन प्राण के दाता ।
आतुर हैृ दुख करहु निपाता ।।
जै हनुमान जयति बल- सागर ।
सुर समूह समरथ भटनागर ।।
जय हनु हनु हनु हनुमंत हठीले ।
बैरिहि मारु बज्र की कीले ।।
ऊँ हीृं ही़ृं हीृं हनूमंत कपीसा ।
ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ।।
जय अंजनि कुमार बलवंता ।
शंकरसुवन बीर हनुमंता ।।
बदन कराल काल कुल घालक ।
राम सहाय सदा प्रति पालक ।।
भूत-प्रेत-पिशाच निशाचर ।
अगिन बैताल काल मारी मर ।।
इन्हे मारु तोहिं सपथ राम की ।
राखु नाथ मरजाद नाम की ।।
सत्य होउ हरि सपथ पाई के ।
रामदूत धरु मारु धाइ के ।।
जय जय जय हनुमंत अगाधा ।
दुख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा ।
नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।।
वन उपवन मग गिरि गृह माही ।
तुम्हरे डर हम डरपत नाही ।।
जनकसुता हरि दास कहावौ ।
ताकि सपथ विलम्ब न लावौ ।।
जै जै जै धुनि होत अकासा ।
समिरत होय दुसह दुख नासा ।।
चरन पकरि, कर जोरि मनावौ ।
यहि औसर अब केहिं गोहरावौ ।।
उठु,उठु चलु तोहि राम दुहाई ।
पाँय परौ करि जोरि मनाई ।।
ऊँ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ऊँ हनु हनु हनु हनु हनूमंता ।।
ऊँ हं हं हाँक देति कपि चंचल ।
ऊँ सं सं सहमि पराने खल-दल ।।
अपने जन को तुरत उबारौ ।
सुमिरत होय आनंद हमारौ ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै ।
ताहि कहौ फिर कौन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की ।
हनुमत रक्षा करै प्राण की ।।
यह बजरंग-बाण जो जापै ।
तासो भूत-प्रेत सब कांपै ।।
धूप देय जो जपै हमेशा ।
ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।
।। दोहा ।।
उर प्रतीति द्रृण सरन है
पाठ करै धरि ध्यान ।
बाधा सब हर,
करै सब काम सफल हनुमान ।।
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